उत्तर प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ने के समस्त प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है परन्तु फिर भी जोतो के
निरंतर आकर, मृदा की उर्वरता में ह्रासकृषि उत्पादन लागत में वृद्धि तथा अनुपातील रूप से कृषि उत्पादों के मूल्य में वृद्धि न होने से कृषि विकास की गति मंद पद गयी है I नरेंद्र देव कृषि एवं प्रोधोगिक विश्व विद्यालय कुमारगंज अयोध्या के सहायक प्राध्यापक डा प्रकाश यादव कृषि उत्पादन में कम लागत की तकनीकी पर अपने विचार रखे , डा प्रकाश यादव बताया की कृषि चैत्र की विकास दर में वृद्धि के लिए उपलब्ध संसाधनों का न केवल अनुकूलतम उपयोग कृषि उत्पादन लागत मेंकमीके उपायों पर भी बल दिया जाना आवस्यक है I इस पर कुछ तकनीको का विवरण इस प्रकार हो सकता है
१- फसल / प्रजातियों का चुनाव - उत्तर प्रदेश को ९ कृषि जलवायु भागो में विभाजित किया गया है उनके अनुरूप प्रजातियों के उपयॉग से बगैर किसी अतिरिक्त लागत के उत्पादन स्तर में वृद्धि लायी जा सकती है सीमित सिंचाई वाले छेत्रो में धान गेहू वाली फसलों के स्थान पर कम सिंचाई वाली फसल जैसे ज्वार बाजरा अरहर टिल अलसी का उत्पादन करे ।
२- समय से बुवाई - प्रदेश में सर्वाधिक छेत्रफल धान- गेहू फसल चक्र का है। ये दोनों फसल नियत समय से बोई जाने के कारन अपनी छमता के अनुरूप उत्पादन देने में समर्थ नहीं है। प्रचलित प्रजाति को ध्यान में रखते हुए धान की रोपाई जुलई के प्रथम पखवारे में तथा गेहू की बुवाई नवंबर के प्रथम पखवारे में करते है तो उत्पादन बगैर किसी अतरिक्त लागत के बढ़ जायेगा । विलंब से बोन पर विलम्ब की प्रजाति का उपयोग करे ।
३- बीज सोधन – फसलों के वृद्धि तथा विकास के समय रोग व कीटो का प्रभाव सर्वाधिक होता है । ज़्यदातर ये देखा गया है की प्राम्भिक अवस्था मेंइसकाज्ञान न होने के कारन ज्यादा नुक्सान किसानो को करना पड़ता है । सभी फसलों की बीजशोधन के माध्यम से रोग व कीट से मुक्त रखा जा सकता है । वर्तमान में जैव बीज साधको तथा Trichoderma के प्रयोग से कम लगत मेंफसलमें लगने वाले रोग व कीट की समस्या को रोका जा सकता है। बीज सोधन की लागत कड़ी फसल मेंकीट रोग रोकथाम की लगत से बहुत कम होती है साथ ही साथ फसल के उत्पादन किओ ज्यादा बढ़ाया जा सकता है। जैव उर्वरको तथा एजोटोबैक्टर राइजोबियम पी एस बी आदि से उपचार कर पोशाक तत्वों की मांग को पूरा किया जा सकता है।
४- उर्वरक/ जैव उर्वरक - फसलों १६ पोसक तत्वों की आवस्यकता होती है इनमे कार्बन हाइड्रोजन तथा आक्सीजन पानी तथा हवा से मिलती है तथा सेष १३ तत्व पौधे जमीन से लेते है। रासयनिक उर्वरक कितनी मात्रा मेंदेनाहै इसकी सही जानकारी के लिए पहले अपने मिटटी की जाँच करवाए जिससे आपको ज्यादा लाभ मिल सके । मीठी की जाँच करने से हमको ये पता लग जाता है की हमारी मिटटी में किस पोसक तत्व की कमी है तब उस पोसक तत्व को उचित मात्रा में देते है जिससे हमारी लागत भी ज्यादा नहीं लगती तथा हमको लाभ भी होता है। *हमारे खेतो मेंफॉस्फोरसकी मात्रा काफी होती है क्योकि हम जो फॉस्फोरस खेतो में डालते है उसका २५% ही फसलों को मिलता है सेष मिटटी में भंडारित रहता है इसे फसलों को प्राप्त करने हेतु जैव उरवर्क का उपयोग करते है * देशी व केचुए की खाद के इस्तेमाल से फॉस्फोरस की जरुरत में २०% की कमी आ जाती है । डाईअमोनियम फॉस्फेट के स्थान पर सिंगल सुपर फॉस्फेट, ऍन पी के, उर्वरको का इस्तमाल करे।
५- सह फसली खेती- कृषि योग्य भूमि निरंतर कम होती जा रही है इस दशा में सहफसली खेती से न केवल प्रति इकाई उत्पादन बल्कि कीट/ रोग को भी कम किया जा सकता है जैसे की गेहू+ सरसो , आलू
+ राइ , गन्ना+ राइ , गन्ना + मसूर । सह फसली खेती से भूमि की उर्वरा भी बनी रहती है । फल सब्जी उत्पादन आर्थिक रूप से कमजोर किसान अपनी फसल के साथ साथ फल, सब्जी का उत्पादन कर के साल भर आमदनी का जरिया बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में बनाए रख सकते हैं| यदि मौसमी सब्जी को पहले या बाद में उत्पादन कर के बाजार में उतारा जाए तो इस से ज्यादा लाभी मिलता है, इसी तरह फलदार पौधे जैसे केला, पपीता, करौंदा, आवंला, बेर व बेल वगैरह को खेत के चारों तरफ लगा कर अलग से आय प्राप्त कर सकते हैं| इन पेड़ों से खेत हिफाजत भी हो जाती है| इस के अलावा जैम, जेली, आचार, मुरब्बा, सौस, केचअप, कैंडी, स्क्वैश व शरबत वगैरह बनाने का काम कर के भी छोटे मंझोले किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं|
मशरूम उत्पादन मशरूम कम लागत में ज्यादा आमदनी देने वाली फसल है| इस में प्रोटीन सहित तमाम पोषक तत्त्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप काफी मात्रा में पाए जाते हैं| आर्थिक रूप से पिछड़े भूमिहीन, बेरोजगारी नवयुवकों के लिए यह आमदनी का अच्छा साधन बन सकता है| इस की मांग उत्सवों, शादी की पार्टियों व होटलों वगैरह में साल भर बनी रहती है| मुर्गी पालन छोटे व मझोले किसान सीमित क्षेत्रफल में हवादार शेड बना कर आसानी से मुर्गी पालन कर सकते हैं| रोजाना 2-3 घंटे समय दे कर 200- 250 ब्रायलर या 150 लेयर पाले जा सकते हैं| ब्रायलर 40-45 दिनों में बढ़ कर बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं| मुर्गी की बीट (कार्बनिक खाद) पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण फसल उत्पादन बढ़ाती हैं|
बकरी पालन बकरी पालन गरीब किसानों के लिए एक जोखिम कारोबार है| बकरी को गरीबों की गाय इसलिए कहा जाता है, क्योंकी यह काम देखरेख में दूध के साथ 1 बार में कई बच्चे पैदा करती है| हर ब्यात के बाद 6-7 महीने के अंदर यह फिर से गाभिन हो जाती है| इस व्यवसाय को 2-3 बकरियों से शुरू कर के 1 साल में 10-12 बकरियां पैदा हो जाती हैं| दुसरे साल में बकरियां का झुंड बन जाता है| समय समय पर बकरों या बकरियां को बेच कर आमदनी होती रहती है| बकरी पालन से फसलों के लिए मूल्यवान कार्बनिक खाद मिलती हैं, जो मिट्टी में पोषक तत्त्वों की पूर्ति के साथ साथ कार्बन का स्तर भी बढ़ाती है|
मधुमक्खी पालन किसान तकनीकी जानकारी ले कर शुद्ध शहद का उत्पादन आसानी से कर सकते हैं| इसे शुरू करने के लिए मधुमक्खी का बाक्स व एक कालोनी को खरीदना पड़ता है इस के बाद मधुमक्खियाँ अपनी कालोनी बढ़ाते हुए शहद उत्पादन करती रहती हैं| जाड़े के मौसम में फूल वाली फसलें खूब होने के कारण 4-5 बाक्स रखने से रोजाना 1 बोतल शुद्ध शहद मिलता है, जिसकी बाजार में कीमत करीब 100 रूपए होती है| इस व्यवसाय से मोम के रूप में अतिरिक्त लाभ होता है|
वर्मी कम्पोस्ट
जैविक खेती में वर्मी कम्पोस्ट उपयोगी खाद के रूप में आमदनी का उत्तम जरिया बन गया है| इस के तहत गोबर व घरेलू कचरे को कहस किस्म के केंचुओं द्वारा इस्तेमाल करा के बढ़िया खाद तैयार की जाती है|
६- उपयुक्त कृषि यंत्रो का उपयोग -
बुवाई हेतु बीज सह उर्वरक ड्रिल का प्रयोग बीज तथा उर्वरक दोनोंकी उपयोग को बढ़ाता है । जेरो टिलेज सीड ड्रिलके द्वारा विलम्ब की दशा में धान के खेत मेंबिनाकिसी अतरिक्त तयारी किये बुवाई की जा सकती है । रोटावेटर की सहायता से खेत की जुताई बुवाई के लिए तयारी समतलीकरण आदि कार्यो को किया जाये। स्प्रिंकलर / ड्रिप के माध्यम से सिंचाई किया जा सकता है इससे पानी की बचत भी होती है तथा फसल उत्पादन में लाभ भी मिलता है ।
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